Climate change in Bengaluru: गर्मी आने से पहले ही बेंगलुरु जल बूंद बूंद के लिए तरस रहा है। आखिर पानी के लिए क्यों तरस रहा है बेंगलुरु? बेंगलुरु जल के लिए तरस रहा है इसका वजह है जलवायु परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन मौसम के पैटर्न को बाधित कर रही है। बेंगलुरु में जलवायु परिवर्तन होने से जल की घोर संकट हो रही है। भारत में सबसे ठंडी शहर बेंगलुरु में असमान रूप से सबसे अधिक तापमान और लू चलने की बात कही जा रही है।
बेंगलुरु में जल की समस्या कैसे हुई?
बेंगलुरु में जल की समस्या की वजह जलवायु परिवर्तन बताया जा रहा है। इसी के साथ लोगों द्वारा जल उपयोग की भी समस्या बताई जा रहा है। एक समय बेंगलुरु कावेरी नदी पर जल के लिए निर्भर रहा करता था लेकिन आज कावेरी नदी की दशा बिगड़ चुकी है। वहां पर पानी नहीं है। कुछ समय से उस स्थान पर बारिश भी नहीं हुई और उस नदी से ढेर सारी नहरें निकाल दी गई यही कारण है कि आज बेंगलुरु जल की घोर संकट से जूझ रही है।
एक ही बाल्टी पानी से नहाने और टॉयलेट जाने की आई नौबत!
बेंगलुरु शहर के लोग जल के लिए मात्र कावेरी नदी पर निर्भर थे लेकिन वहां पर अब कम पानी है। ऐसे में अगर कोई कावेरी नदी से पानी निकालता है तो उस पर ₹5000 की जुर्माना लगेगी। बता दें की 22 परिवारों पर 5000 की जुर्माना भी लग चुकी है। बेंगलुरु में नौबत यहां तक आ गई है कि एक ही बाल्टी पानी में नहाना भी है और टॉयलेट भी साफ करना है इसके साथ साथ गंदी गाड़ी नहीं धोना है, पौधों में पानी भी नहीं डालना है अगर कोई इन बातों का उल्लंघन करता है तो ₹5000 जुर्माना भरना पड़ेगा।
जलवायु परिवर्तन ( climate change) क्या है?
जब किसी क्षेत्र में औसत मौसम में कुछ समय के लिए परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। इसमें मुख्य रूप से तीव्र सूखा, पानी की कमी, ध्रुवीय बर्फ का पिघलना, विनाशकारी तूफान, लू, जंगल में आग लगना, बाढ़, महासागर के तापमान में वृद्धि होना, समुद्र का स्तर बढ़ाना शामिल है।
जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य पर काफी गहरा असर पड़ती है। क्लाइमेट चेंज होने से इंसान को हृदय की समस्या, अस्थमा एवं कैंसर जैसी बीमारियां उत्पन्न होती हैं जो की जानलेवा बीमारी है।
जलवायु परिवर्तन तापमान में लगातार वृद्धि के कारण होती है। जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से वनों की कटाई करने से, कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस को जलाने से धुआं निकलते हैं जिससे पृथ्वी के वातावरण में तेजी से ग्रीनहाउस जैसी गैस की वृद्धि होती है।
जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक रूप से भी हो सकती है। लेकिन इसमें अधिक समय लगते हैं।
हमें अपनी जलवायु को बचाने के लिए खुद जिम्मेदारी लेनी चाहिए जितना संभव हो सके हमें पौधे लगानी चाहिए, पानी की कम और उचित उपयोग करनी चाहिए, सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करनी चाहिए, प्लास्टिक की थैली की जगह जूट और कागज की थैली इस्तेमाल करनी चाहिए, कूड़े कचरे अवसाद को नदी में प्रवाहित करने के बजाय डस्टबिन में डालनी चाहिए इस प्रकार हमारे छोटे-छोटे प्रयास से जलवायु बचाने में मदद मिलेगी।