भगवान कृष्ण के जन्म स्थान मथुरा को लेकर अक्सर विवाद छिड़तें हैं। इस मंदिर को तीन बार तोड़ा गया एवं चार बार बनवाया गया आईए विस्तारपूर्वक जानते हैं कृष्ण जन्म भूमि के विवाद के बारे में। विवाद का मूल कारण मंदिर और मस्जिद से जुड़ा है लोगों का मानना है कि मंदिर को तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद बनवाया गया था। इसलिए वहां मस्जिद नहीं मंदिर होनी चाहिए।
अगर इसके इतिहास में जाए तो ज्ञात होता है कि कृष्ण जन्मभूमि पर बने मंदिर को तीन बार तोड़ा गया एवं चार बार बनवाया गया। लगभग 5000 साल पहले कटरा केशव देव में कंस का शासन हुआ करता था कंस की बहन देवकी के गर्भ से कंस के कारागार में रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ। इतिहासकारों का भी मानना है कि कटरा केशव देव भगवान कृष्ण का जन्म भूमि है।
सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में इस मंदिर का 400 ईस्वी में निर्माण करवाया गया। साल 1017 में महमूद गजनवी ने इस मथुरा पर आक्रमण किया और 21 दिन तक मथुरा को लूटा उसके बाद कृष्ण जन्मभूमि पर बने मंदिर को नष्ट करवा दिया। उसके नष्ट किए जाने के बाद 1050 ईस्वी में फिर से मंदिर का निर्माण करवाया गया। 16 वीं शताब्दी में सिकंदर लोदी ने फिर मंदिर पर आक्रमण कर इसे तहस-नहस कर दिया। जहांगीर के शासनकाल में एक बार फिर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया और एक बार फिर से औरंगजेब ने मंदिर को तुड़वा दिया और उसी स्थान पर ईदगाह का निर्माण करवा दिया। 1770 ईस्वी में मराठाओं एवं मुगलों के बीच युद्ध हुई थी जिसमें मराठा साम्राज्य की जीत हुई थी जिसके बाद मराठाओं ने एक बार फिर से मंदिर स्थापित करवाया। बताया जाता है कि मंदिर धीरे-धीरे जर्जर होता गया और और भूकंप आने से ध्वस्त हो गया। इसके बाद अंग्रेजों ने अपने शासन काल में इस जमीन को वाराणसी के राजा पटनीमल को बेच दिया जिसके बाद मुसलमान ने बेचे गए मंदिर का कुछ हिस्सा ईदगाह मस्जिद का बताया। आजादी के बाद 1951 में मंदिर का निर्माण फिर से हुआ मंदिर शाही ईदगाह से सटकर बना इसके बाद वहां हिंदू और मुस्लिम में विवाद होने लगा 1968 में शाही मस्जिद के साथ कृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान ने समझौता किया इसमें यह तय हुआ कि 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद बने रहे।
फिलहाल इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है कि शाही ईदगाह परिसर पर सर्वे की जाएगी।